खरगे का तीखा सवाल! ‘जब भगवान के दान का हिसाब होता है, तो क्या RSS संविधान से भी ऊपर है?’, संघ प्रमुख मोहन भागवत को चुनौती
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खरगे ने कहा कि मोहन भागवत ने स्वयंसेवकों के साथ अपने इको चैंबर में जवाब दिया. प्रियांक खरके ने कहा कि अगर संगठन लोगों का एक समूह है, तो इससे उन्हें कर से छूट नहीं मिले बल्कि उन पर कर लगाया जाना चाहिए. उन्हें किस आधार पर छूट दी जा रही है? उन्होंने सवाल पूछते हुए कहा कि कल अगर मैं आरएसएस की तरह ही लोगो का एक समूह बनाऊं और गुरु दक्षिणा लूं, तो क्या आयकर और सरकार इससे सहमत होंगे? उन्होंने कहा कि मैं इसे भी गुरु दक्षिणा कहूंगा.
मोहन भागवत का स्वयंसेवकों को संबोधित करने का क्या मतलब है? उनका पहले से ही ब्रेनवॉश किया जा चुका है. अगर उन्हें इतना भरोसा है कि वे कानूनी रूप से सही हैं, तो पूरे आरएसएस को हमारे कानूनी और संवैधानिक विशेषज्ञों के साथ बहस करने दें. अगर वे बहस करना चाहते हैं, तो आइए इसके लिए स्वर और मानदंड तय करें. आइए हम केवल उन चीजों पर बहस करें जो उन्होंने ‘ऑर्गनाइज़र’ पत्रिका में छापी हैं. संविधान, राष्ट्रीय ध्वज, स्वतंत्रता संग्राम, जो कुछ भी उन्होंने अपने मुखपत्र ‘ऑर्गनाइज़र’ में प्रकाशित किया है.
संविधान से ज्यादा शक्तिशाली नहीं हैं
प्रियांक खरगे ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कितने शक्तिशाली और ताकतवर हैं. वे संविधान से ज्यादा शक्तिशाली नहीं हो सकते हैं. भारत में जब भगवान को दान किए गए प्रत्येक रुपये का हिसाब होता है, तो क्या ये लोग भगवान या भारत के संविधान से ऊपर हैं?
बेंगलुरु में एक कार्यक्रम के दौरान 9 नवंबर को आरएसएस प्रमुख ने कहा अगर हम होते ही नहीं, तो वे किस पर प्रतिबंध लगाते? हर बार अदालतों ने प्रतिबंध हटा दिया और आरएसएस को एक वैध संगठन के रूप में मान्यता दे दी. उन्होंने कहा कि कानूनी तौर पर, हम एक संगठन हैं इसलिए हम असंवैधानिक नहीं हैं. कई चीजें रजिस्टर्ड नहीं हैं. यहां तक कि हिंदू धर्म भी रजिस्टर्ड नहीं है.
आरएसएस प्रमुख ने आगे कहा कि अगर हम नहीं होते, तो उन्होंने किस पर प्रतिबंध लगाया होता? उन्होंने दावा किया कि आयकर विभाग और अदालतों ने यह नोट किया है कि आरएसएस व्यक्तियों का एक निकाय है और इसे कर से छूट दी है.